Jan 9, 2013

वे भाई क्यूं माने, हम बहन नहीं मान सकते???...

 “…ताली दोनों हाथों से बजती है। कहीं न कहीं लड़की का ही दोष है, वह चाहती तो उन दोषियों में से किसी को भी भाई कहकर उनके हाथ-पैर जोड़ सकती थी।…”



उपरोक्त पंक्तियां महान साधु, माननीय श्री आसाराम बापू जी के उस बयान से ली गई हैं जो उन्होंने दिल्ली गैंगरेप पर दिया है।
माफ करना यदि मैं कुछ गलत कह दूं लेकिन आसाराम के इस बयान से ऐसा लगता है जैसे आसाराम ने ही भेजा हो उन लोगों को यह कहकर कि यदि वह लड़की भाई कहे और हाथ पैर जोड़कर अपनी इज्जत की भीख मांगे तो छोड़ देना। बहरहाल यह तो सच नहीं हो सकता,यह तो सिर्फ मेरी कल्पना है। बापू के भक्तों से गुजारिश है कि कृपया मुझ पर कोई केस ना ठोंक दें।
लेकिन बापू जी लड़कियां तो वैसे भी बदनाम हैं भाई कहकर संबोधित करने के लिए। और फिर लड़कियां ही हमें भाई क्यों माने या कहें, हम लड़कों को भी तो उन्हें बहन मानना चाहिए।
वैसे आसाराम जी अभी तक कहाँ सोए थे आप?...उस केस को हुए तो तीन हफ्ते से भी ज्यादा समय बीत चुका है और वह आत्मा भी अपने घायल शरीर को एक हफ्ता पहले ही छोड़ चुकी है। खैर छोड़ो इस बात को...दिस इज नॉट अ डिबेटिंग मैटर...आसाराम जानते हैं कि जब जागो तभी सवेरा
लेकिन आसाराम का यह बयान सवेरा नहीं बल्कि समाज को उसी अंधेरे की ओर ढकेल कर रहा है जिससे कि हम सदियों से जूझ रहे हैं। जहां एक तरफ लगभग 90 फीसदी मेट्रोपोलिटन्स अपने शरीर पर पुलिस के लाठी डंडे खाकर भी एक अजनबी के लिए न्याय की मांग पर अड़े हैं और समाज भी उस मासूम के साथ किए गए इस कुकृत्य के लिए खुद को धिक्कार रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ साधु-संत, नेता और समाज सुधारक टाइप के लोग अपनी जड़ता से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं।
समाज जान गया है कि वह कोई अजनबी नहीं बल्कि उसका ही हिस्सा है उसके साथ जो हुआ उससे उस मासूम की इज्जत नहीं गई है बल्कि समाज की प्रतिष्ठा को ही चोट पहुंची है। यह समाज अब अपनी परिवर्तन विरोधी मानसिकता के दलदल से निकलकर, स्वच्छ एवं भली सोंच की कठोर समतल जमीन पर अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। देश एक बड़े बदलाव एवं सुधार की आशाओं का दीपक जलाए बैठा है। ऐसे में आसाराम उस दीपक की लौ को फूंक मार कर बुझाने की कोशिश कर रहे हैं।
आखिर क्यों धर्म और समाज के ये ठेंकेदार समाज में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं होने देना चाहते हैं?...जब भी हम अपनी आनुवांशिक बुराइयों को खत्म करने की कोशिश करते हैं, हर बार ये लोग उसे दबा देते हैं या दबाने की कोशिश करते हैं...क्यों?...
एक वजह जो बिल्कुल साफ है, वो यह कि इनके जैसे कुछ लोग जो धर्म और अध्यात्म के नाम पर जो अंधविश्वास का अपना व्यवसाय चलाते हैं उसे ये बंद नहीं होने देना चाहते हैं। इन्हे अच्छी तरह मालूम है कि यदि भारतीय समाज और इसके लोगों की सोंच एवं मानसिकता में कुछ बदलाव आया तो रोज जो ये सत्संग की दुकान लगा कर बैठते हैं वो हमेशा के लिए बंद हो जाएगी। फिर भोले-भाले लोग जिन्हें गुमराह कर उनकी मेहनत के पैसे भेंट में लेकर अपनी जेबें गर्म करते थे, वो भी मिलने बंद हो जाएंगे और ये गुरूमहात्मा भी आम-आदमी बन जाएंगे। मैं अपील करता हूं कि अब हमें इन ढोंगियों के जाल से बाहर निकलकर इनके साम्राज्य को ध्वस्त कर देना चाहिए नहीं तो ये इसी तरह हमारा यूज करते रहेंगे....