मोरक्को के ग्रामीण क्षेत्र में 10 महीने पहले एक नाबालिग लड़की(16
साल) के साथ 25 वर्षीय
लड़के ने बलात्कार किया था। उस लड़की का नाम था अमीना। बलात्कारी लड़के के खिलाफ कोई
मुकदमा नहीं चलाया गया, क्योंकि वह बलात्कारी अमीना से शादी करने को तैयार हो गया
था। अमीना का परिवार भी इस बात के लिए राजी हो गया और उस मासूम की शादी उसी के
बलात्कारी के साथ कर दी गई या यूं कहें कि उस बलात्कारी को अमीना के साथ बलात्कार
करने का लाईसेंस दे दिया गया। किसी ने अमीना से एक बार भी उसकी मर्जी नहीं पूंछी।
किसी तरह उस बलात्कारी के साथ 7 महीने गुजारने के बाद उस 16 वर्ष की बच्ची ने खुद
को उस दरिंदे की कैद से आजाद कर लिया। उसने आत्महत्या कर ली। उसने भी एक अपराध
किया लेकिन उसके इस अपराध से किसी को कोई कष्ट नहीं हुआ।
मां-बाप, समाज और कानून ने अपना-अपना फायदा देख कर अमीना को एक खिलौना
की भांति उस बलात्कारी को सौंप दिया। किसी ने एक बार भी उस मासूम को इंसाफ दिलाने
की नहीं सोची।
हमारे भारतीय समाज की भी तो यही तस्वीर है। शायद वहां के लोगों की भी
यही सोंच होगी जैसी भारतीय समाज के लोगों की है। यहां जिस तरह से मां-बाप लड़की को
बोझ मानते हैं और जब तक शादी न कर दें तब तक उनके माथे से चिंता की लकीरें नहीं
हटती उसी तरह अमीना के मां-बाप ने भी सोंचा होगा कि आज नहीं तो कल इसकी शादी करनी
ही है। और वैसे भी अब इससे कौन शादी करेगा?...अच्छा होगा जो ये बला सिर से टल जाए।
हम खुद को संवेदनशील कहते हैं, क्या वाकई हम संवेदनशील हैं?...हमें संवेदना का
अर्थ भी पता है?...एक लड़की के साथ
दुराचार किया जाता है और हम दुराचारी का साथ देते हैं। हम क्या उसके मां-बाप भी सब
कुछ शांतिपूर्वक निबटाने के लिए उस दुराचारी के साथ खड़े हो जाते हैं। कानून तो
पहले से ही अंधा है और अंधा ही नहीं आलसी भी है। खुद ही सब कुछ निबटा लो कानून को
कष्ट मत दो। लेकिन क्या किसी भी व्यक्ति ने एक बार भी उस मासूम के बारे में
सोंचा...किसी ने भी उसकी हालत जानने की कोशिश की...क्या किसी ने ये सोंचा कि उस
लड़की के साथ नाइंसाफी हो रही है...उसका मन टटोलने की जरूरत किसी ने समझी...क्यों
उसे अकेला छोड़ दिया गया जब उसको जरूरत थी हमारे सहारे की...क्यों किसी ने उसकी
संवेदना, मानसिक एवं शारीरिक पीढ़ा को नहीं महसूस किया…क्यों….????
मैं इस घटना के बारे में जानकर बेहद व्यथित हूं। हलांकि मोरक्को ही
नहीं, हमारे समाज की भी यही हालत है। हमारे समाज ने आज तक किसी भी बलात्कार की
शिकार लड़की को दुबारा नहीं अपनाया। बिना किसी गलती के हम अपनों को सजा सुना देते
हैं। और हम में से कई चाहकर भी किसी ऐसी लड़की का साथ नहीं देते क्योंकि हम डरते
हैं उस समाज से जो हमारा खुद का बनाया हुआ है। और कुछ नहीं लिखना मुझे
अब..........
हां एक बात और, मैं बार-बार उस लड़की का नाम ले रहा हूं लेकिन उस बलात्कारी का
नहीं, क्योंकि मैंने कभी भी यह नहीं माना या सोंचा कि किसी लड़की के साथ बलात्कार
होने से उस लड़की की इज्जत लुट जाती है या उसके परिवार का मान-सम्मान चला जाता है।
बल्कि मैं तो बलात्कारी को कुल्टा, कलमुंहा और ना जाने क्या-क्या मानता हूं। उस
दरिंदे के परिवार के मान-सम्मान के खातिर मैंने उसका नाम नहीं लिया। आप मेरे इस
तर्क पर हंस सकते हैं लेकिन मैं अपनी सोंच को छुपाने में विश्वास नहीं रखता।