Mar 14, 2013

18 में शादी, और 16 में सेक्स...हाय राम


आखिर इस नई आजादी पर क्यों इतना हल्ला मचा रखा है...इस बिल से क्या नुकसान होने वाला है...तमाम तरीके के लॉजिक दिए जा रहे हैं कि 18 में ड्राइविंग लाइसेंस, तो 16 में सेक्स क्यों...18 में बालिग, 18 में वोटिंग राइट्स, 18 में ये, 18 में वो...तो 16 में सेक्स क्यों?.. और तो और शादी से सेक्स को सीधे तौर पर जोड़ा जा रहा है...कि जब शादी करने की उम्र 18 साल तय कर रखी है तो शारीरिक संबंधों की उम्र 16 क्यों तय कर दी गई?...अरे क्या शारीरिक संबंध शादी के बाद ही बनाए जा सकते हैं? अगर हां तो ऐसे लोगों में से कितने इस बात की हामी भरेंगे कि उन्होंने शादी से पहले सेक्स नहीं किया खासकर 25-45 साल के बीच के लोग...और क्या शारीरिक संबंध सिर्फ शादी तक ही सीमित हैं तो माफ करना मैं नहीं मानता...और मुझे यकीन है कि आप में से 90 फीसदी लोग भी इस बात को नहीं मानेंगे। बाकी 10 फीसदी तो अपवाद में आते हैं। इस नियम के बारे में शादी की पृष्ठभूमि से अलग हटकर सोंचना होगा। जो भी बोल रहा है सीधा शादी से जोड़ कर बोल रहा है...यदि शादी से ही जोड़ना है तो फिर किसी भी तरह की चर्चा या डिबेट का पृश्न ही नहीं उठता...क्योंकि जब आप शादी के फेर से नहीं निकल सकते तो फिर आप वही करेंगे जो आप अब तक करते रहें हैं।
मैं इस बारे में कुछ अलग सोंचता हूं...जो कि मैं पहले ही जाहिर कर चुका हूं...इस बिल और इसमें उम्र को लेकर किए गए प्रावधान से हमारे देश में कोई नया नुकसान नहीं होने वाला है...नैतिक, सामाजिक या सांस्कृतिक मूल्यों में कोई ह्रास नहीं होगा जहां तक मेरा मानना है। कोई भी बिल या समाजसुधारक बिल जब पास हो कर इम्पलीमेंट किया जाता है तो हमारे देश में कितना कारगर होता है?...हमारे समाज का ढांचा कुछ ऐसा है कि लोग किसी भी नई चीज को अपनाने में हिचकिचाते हैं और कानून तो इतना माशा-अल्लाह कि क्या कहने...किसी भी नियम कानून का कोई फर्क नहीं पड़ता।
हमारे देश में 95% से ज्यादा लोग इस मुद्दे के बारे में एक ही राय रखते हैं जो कि जग जाहिर है...दिलचस्प बात यह है कि बिल के बारे में उस वर्ग के लोग बोल रहे हैं जिनका इस बिल से कोई लेना नहीं...30 साल से ऊपर के लोग यदि इस मुद्दे पर बोलना बंद कर दें...तो इससे नीचे की उम्र के लोग खुद ही इस बिल पर अपनी राय बदल देंगे...अगर मैं गलत कह रहा हूं तो मुझे ठीक करिए...
अब आप ये कहेंगे कि वो तो बच्चे हैं वो क्या अपने लिए अच्छा सोचेगे। क्यों नहीं अभी तक यही तो होता आया है हमारे घरों में शादी के एक दिन पहले तक तो बच्चे रहो और शादी के एक दिन बाद ही तमाम तरीके की जिम्मेदारियों की उम्मीद की जाती है...आखिर कब तक मां-बाप सोंचते रहेंगे...इसी तरह...
अब बात कर लें इस बिल की तो इस बिल का ऊपरी तौर पर कुछ फायदा जरूर हो सकता है...वजह ये है कि परिस्थितियां रत्ती भर भी नहीं बदलने वाली हैं...लेकिन इतना जरूर है कि उम्र में मिली इस रियायत से युवाओं की सोंच बदल सकती है...क्योंकि बाउंडेशन हट गया है या कम हो गया है...यह एक युवा की सोंच हो सकती है...और अगर ऐसी रिलैक्सिव सोंच युवा के अंदर विकसित होती है तो निश्चित ही कुछ सकारात्मक परिणाम समाज में देखने को मिलें।
लोग इस सोंच को हवा-हवाई करार दे सकते हैं मगर कोई ये बताए कि जमीनी सोंच या हथकंडे कितने कारगर हैं?अपने इस देश में.....

Mar 13, 2013

बहुत याद आती है......


आज ऑफिस जाते समय रास्ते में एक ऑटो देखकर अपने एक दोस्त की याद आ गई। मेरा दोस्त गौरव ऑटो चलाता है, गाजियाबाद में सिहानी गांव से पुराना बसअड्डा। गौरव से मेरी दोस्ती 2010 में हुई थी जब मैं पत्रकारिता के प्रथम वर्ष में था। अगले 2 साल तक हमने खूब मस्ती की। हम रोज मिलते थे क्योंकि कॉलिज जाने के लिए मुझे रोज बसअड्डा जाना पड़ता था। अगर कॉलिज बाइक से भी जाता तो वापस आते समय बाइक सीधी बसअड्डे पर ही रुकती थी।गौरव ने 2 साल में कभी भी मुझसे किराया नहीं लिया साथ ही किसी और ऑटो में भी नहीं बैठने नहीं देता था। वैसे तो मेरे पे कभी किसी की जबरदस्ती नहीं चली। यहां तक कि मेरी महिला मित्रों की भी नहीं। लेकिन गौरव की जबरदस्ती के आगे मैं कुछ भी नहीं कर पाता था। इन दो सालों में गौरव ने मुझे एक भी सिगरेट नहीं खरीदने दी। इतना ही नहीं अपने तथाकथित आत्मसम्मान को मैं गौरव के सामने कभी नहीं रख पाता था।
गौरव को देखकर मैं उससे मिले बिना नहीं रह पाता था। जब मैं पासआउट होने के बाद हमारा रोज-रोज मिलना बंद हो गया। रास्ते में अगर गौरव कहीं मिल जाता था तो मैं अपनी यू-टर्न लेकर उसका पीछा करता था। वैसे ही वो भी मेरा पीछा करने लग जाता था अगर मैं दिख जाऊं रास्ते में कहीं। वो ऑटो से भी मुझे अक्सर पकड़ ही लेता था क्योंकि वो ऑटो भी बहुत तेज चलाता था और फिर हम सिगरेट पीते थे और चल देते थे अपने रास्ते पर, ये कहकर कि...मिलते हैं......हम दोनो को गानो का बहुत शौक है और हमारी गानों की पसंद भी एक जैसी ही है। उसके ऑटो में लगे सोनी के म्यूजिक सिस्टम पर हम तेज आवाज में हनी सिंह, जजी बी और इमरान खान जैसे सिंगर्स के गाने खूब सुनते थे। जिससे लड़कियां अक्सर गुस्सा हो जाती थी।उसके पास मोबाइल नहीं है और उसके अंदर खासियत है कि वो किसी को कॉल भी नहीं करता है...मुझे भी नहीं। मगर फिर भी उसने मेरा नंबर अपने ऑटो पर सुई से उकेर रखा था। मुझे उसकी बहुत याद आ रही है। प्लीज गौरव किसी का मोबाइल मांगकर उस नंबर पर एक मिस कॉल कर दे मेरे यार...प्लीज!!!!!!!!!!

Mar 2, 2013

धोखेबाजों और कालाबाजारों की सरकार


सरकार की नीतियों पर बड़ा ताज्जुब होता है...आज सरकार ने डीजल के थोक मूल्य बड़ा दिए...बीते दिन तेल कंपनियों ने पेट्रोल पर 1.40 रुपए बढ़ाए थे...और आज डीजल पर 1 रुपया बढ़ा दिया...इसी बीच सरकार ने सहानुभूति स्वरूप रसोई गैस सिलेंडर सस्ता कर दिया है...बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर के दाम 37.50 रुपए कम कर दिए गए हैं...बात यदि महंगाई की करें तो सरकार बार-बार कहती है कि हम महंगाई से निपटने की कोशिश कर रहे हैं...लेकिन कोई तरीका नहीं निकाल सकी है हमारी सरकार...क्या कारण है कि इतने उच्च स्तर के अर्थशास्त्री इस सरकार में होने के बावजूद कोई हल नहीं निकल रहा है...जहां तक मुझे लगता है और जितना मैं अपना विवेक लगा पाया हूं महंगाई बढ़ने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तेल(ईंधन) की है...डीजल का सीधा संबंध यातायात और उन किसानों से है जिनसे हमारा देश चलता है...क्योंकि किसान अनाज पैदा करते हैं और यातायात के माध्यम से यह अनाज जरूरतमंद क्षेत्रों में पहुंचाया जाता है...यदि बात करें पेट्रोल की तो पेट्रोल भी आज किसान की जरूरत बन चुका है...डीजल और पेट्रोल में बढोत्तरी का असर हर तरह की चीजों पर पड़ता है...स्पष्ट है कि महंगाई बढ़ेगी...और हमारी सरकार ने इनके दाम को तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को दे दिया है...
उस पर आज का निर्णय तो और भी हास्यास्पद और अतार्किक लगता है...जनता समझेगी कि पेट्रोल, डीजल महंगा हुआ तो सरकार ने सिलेंडर सस्ता कर दिया, तो सरकार हमारी हितैषी है...शायद सरकार की इस निर्णय के पीछे यही सोंच रही होगी...मगर यह फैसला जनहित का नहीं है बल्कि सरकार ने  यह साजिश रची है आम आदमी के खिलाफ...क्योंकि सरकार ने बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर के दाम कम किए हैं...जबकि सब्सिडी वाले सिलेंडर पर दाम घटाने चाहिए थे यदि सरकार वास्तव में भारत की आम-जनता के हित में कोई फैसला करना चाहती थी...क्योंकि जमीनी हकीकत की यदि बात करें तो जब से रसोई गैस की सब्सिडी खत्म की गई है 70 फीसदी लोग अब सातवां सिलेंडर नहीं खरीदते वो 6 सिलेंडर में ही अपना गुजारा करने की कोशिश करते हैं...कुछ लोग जो थोड़े ऊंचे स्तर के हैं वो कोशिश करते हैं कि बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर कम से कम खरीदने पड़ें...ऐसे में बिना सब्सिडी के सिलेंडर के मूल्य घटाकर सरकार किसका फायदा करना चाहती है...हम आप और सरकार सभी ये बखूबी जानते हैं कि LPG सिलेंडर की कालाबाजारी किस हद तक व्याप्त है...गाड़ियों में...हलवाई की दुकान पर...शादियों में  दुकानदार द्वारा छोटे सिलेंडरों को रीफिल करने में और ना जाने कहां-कहां बिना सब्सिडी के सिलेंडर का दुरुपयोग किए जाते हैं...लेकिन बिना सब्सिडी का सिलेंडर आम आदमी की रोटी नहीं बनाता...बल्कि जला देता है...और जली हुई रोटी तो आप जानते ही हैं कि कैसी लगती है...

Jan 25, 2013

कानून, समाज और नागरिक सब “अंधे और आलसी”



मोरक्को के ग्रामीण क्षेत्र में 10 महीने पहले एक नाबालिग लड़की(16 साल) के साथ 25 वर्षीय लड़के ने बलात्कार किया था। उस लड़की का नाम था अमीना। बलात्कारी लड़के के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चलाया गया, क्योंकि वह बलात्कारी अमीना से शादी करने को तैयार हो गया था। अमीना का परिवार भी इस बात के लिए राजी हो गया और उस मासूम की शादी उसी के बलात्कारी के साथ कर दी गई या यूं कहें कि उस बलात्कारी को अमीना के साथ बलात्कार करने का लाईसेंस दे दिया गया। किसी ने अमीना से एक बार भी उसकी मर्जी नहीं पूंछी। किसी तरह उस बलात्कारी के साथ 7 महीने गुजारने के बाद उस 16 वर्ष की बच्ची ने खुद को उस दरिंदे की कैद से आजाद कर लिया। उसने आत्महत्या कर ली। उसने भी एक अपराध किया लेकिन उसके इस अपराध से किसी को कोई कष्ट नहीं हुआ।  
मां-बाप, समाज और कानून ने अपना-अपना फायदा देख कर अमीना को एक खिलौना की भांति उस बलात्कारी को सौंप दिया। किसी ने एक बार भी उस मासूम को इंसाफ दिलाने की नहीं सोची।
हमारे भारतीय समाज की भी तो यही तस्वीर है। शायद वहां के लोगों की भी यही सोंच होगी जैसी भारतीय समाज के लोगों की है। यहां जिस तरह से मां-बाप लड़की को बोझ मानते हैं और जब तक शादी न कर दें तब तक उनके माथे से चिंता की लकीरें नहीं हटती उसी तरह अमीना के मां-बाप ने भी सोंचा होगा कि आज नहीं तो कल इसकी शादी करनी ही है। और वैसे भी अब इससे कौन शादी करेगा?...अच्छा होगा जो ये बला सिर से टल जाए।
हम खुद को संवेदनशील कहते हैं, क्या वाकई हम संवेदनशील हैं?...हमें संवेदना का अर्थ भी पता है?...एक लड़की के साथ दुराचार किया जाता है और हम दुराचारी का साथ देते हैं। हम क्या उसके मां-बाप भी सब कुछ शांतिपूर्वक निबटाने के लिए उस दुराचारी के साथ खड़े हो जाते हैं। कानून तो पहले से ही अंधा है और अंधा ही नहीं आलसी भी है। खुद ही सब कुछ निबटा लो कानून को कष्ट मत दो। लेकिन क्या किसी भी व्यक्ति ने एक बार भी उस मासूम के बारे में सोंचा...किसी ने भी उसकी हालत जानने की कोशिश की...क्या किसी ने ये सोंचा कि उस लड़की के साथ नाइंसाफी हो रही है...उसका मन टटोलने की जरूरत किसी ने समझी...क्यों उसे अकेला छोड़ दिया गया जब उसको जरूरत थी हमारे सहारे की...क्यों किसी ने उसकी संवेदना, मानसिक एवं शारीरिक पीढ़ा को नहीं महसूस कियाक्यों….????
मैं इस घटना के बारे में जानकर बेहद व्यथित हूं। हलांकि मोरक्को ही नहीं, हमारे समाज की भी यही हालत है। हमारे समाज ने आज तक किसी भी बलात्कार की शिकार लड़की को दुबारा नहीं अपनाया। बिना किसी गलती के हम अपनों को सजा सुना देते हैं। और हम में से कई चाहकर भी किसी ऐसी लड़की का साथ नहीं देते क्योंकि हम डरते हैं उस समाज से जो हमारा खुद का बनाया हुआ है। और कुछ नहीं लिखना मुझे अब..........
हां एक बात और, मैं बार-बार उस लड़की का नाम ले रहा हूं लेकिन उस बलात्कारी का नहीं, क्योंकि मैंने कभी भी यह नहीं माना या सोंचा कि किसी लड़की के साथ बलात्कार होने से उस लड़की की इज्जत लुट जाती है या उसके परिवार का मान-सम्मान चला जाता है। बल्कि मैं तो बलात्कारी को कुल्टा, कलमुंहा और ना जाने क्या-क्या मानता हूं। उस दरिंदे के परिवार के मान-सम्मान के खातिर मैंने उसका नाम नहीं लिया। आप मेरे इस तर्क पर हंस सकते हैं लेकिन मैं अपनी सोंच को छुपाने में विश्वास नहीं रखता।

Jan 9, 2013

वे भाई क्यूं माने, हम बहन नहीं मान सकते???...

 “…ताली दोनों हाथों से बजती है। कहीं न कहीं लड़की का ही दोष है, वह चाहती तो उन दोषियों में से किसी को भी भाई कहकर उनके हाथ-पैर जोड़ सकती थी।…”



उपरोक्त पंक्तियां महान साधु, माननीय श्री आसाराम बापू जी के उस बयान से ली गई हैं जो उन्होंने दिल्ली गैंगरेप पर दिया है।
माफ करना यदि मैं कुछ गलत कह दूं लेकिन आसाराम के इस बयान से ऐसा लगता है जैसे आसाराम ने ही भेजा हो उन लोगों को यह कहकर कि यदि वह लड़की भाई कहे और हाथ पैर जोड़कर अपनी इज्जत की भीख मांगे तो छोड़ देना। बहरहाल यह तो सच नहीं हो सकता,यह तो सिर्फ मेरी कल्पना है। बापू के भक्तों से गुजारिश है कि कृपया मुझ पर कोई केस ना ठोंक दें।
लेकिन बापू जी लड़कियां तो वैसे भी बदनाम हैं भाई कहकर संबोधित करने के लिए। और फिर लड़कियां ही हमें भाई क्यों माने या कहें, हम लड़कों को भी तो उन्हें बहन मानना चाहिए।
वैसे आसाराम जी अभी तक कहाँ सोए थे आप?...उस केस को हुए तो तीन हफ्ते से भी ज्यादा समय बीत चुका है और वह आत्मा भी अपने घायल शरीर को एक हफ्ता पहले ही छोड़ चुकी है। खैर छोड़ो इस बात को...दिस इज नॉट अ डिबेटिंग मैटर...आसाराम जानते हैं कि जब जागो तभी सवेरा
लेकिन आसाराम का यह बयान सवेरा नहीं बल्कि समाज को उसी अंधेरे की ओर ढकेल कर रहा है जिससे कि हम सदियों से जूझ रहे हैं। जहां एक तरफ लगभग 90 फीसदी मेट्रोपोलिटन्स अपने शरीर पर पुलिस के लाठी डंडे खाकर भी एक अजनबी के लिए न्याय की मांग पर अड़े हैं और समाज भी उस मासूम के साथ किए गए इस कुकृत्य के लिए खुद को धिक्कार रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ साधु-संत, नेता और समाज सुधारक टाइप के लोग अपनी जड़ता से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं।
समाज जान गया है कि वह कोई अजनबी नहीं बल्कि उसका ही हिस्सा है उसके साथ जो हुआ उससे उस मासूम की इज्जत नहीं गई है बल्कि समाज की प्रतिष्ठा को ही चोट पहुंची है। यह समाज अब अपनी परिवर्तन विरोधी मानसिकता के दलदल से निकलकर, स्वच्छ एवं भली सोंच की कठोर समतल जमीन पर अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। देश एक बड़े बदलाव एवं सुधार की आशाओं का दीपक जलाए बैठा है। ऐसे में आसाराम उस दीपक की लौ को फूंक मार कर बुझाने की कोशिश कर रहे हैं।
आखिर क्यों धर्म और समाज के ये ठेंकेदार समाज में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं होने देना चाहते हैं?...जब भी हम अपनी आनुवांशिक बुराइयों को खत्म करने की कोशिश करते हैं, हर बार ये लोग उसे दबा देते हैं या दबाने की कोशिश करते हैं...क्यों?...
एक वजह जो बिल्कुल साफ है, वो यह कि इनके जैसे कुछ लोग जो धर्म और अध्यात्म के नाम पर जो अंधविश्वास का अपना व्यवसाय चलाते हैं उसे ये बंद नहीं होने देना चाहते हैं। इन्हे अच्छी तरह मालूम है कि यदि भारतीय समाज और इसके लोगों की सोंच एवं मानसिकता में कुछ बदलाव आया तो रोज जो ये सत्संग की दुकान लगा कर बैठते हैं वो हमेशा के लिए बंद हो जाएगी। फिर भोले-भाले लोग जिन्हें गुमराह कर उनकी मेहनत के पैसे भेंट में लेकर अपनी जेबें गर्म करते थे, वो भी मिलने बंद हो जाएंगे और ये गुरूमहात्मा भी आम-आदमी बन जाएंगे। मैं अपील करता हूं कि अब हमें इन ढोंगियों के जाल से बाहर निकलकर इनके साम्राज्य को ध्वस्त कर देना चाहिए नहीं तो ये इसी तरह हमारा यूज करते रहेंगे....

Dec 31, 2012


"दामिनी" कहूँ या "अमानत"

"दामिनी" कहूँ या "अमानत" मुझे पता नहीं! अब इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम(मैं और आप सभी) उसके बारे में कितना जानते हैं, जिसके लिए हम पिछले दो हफ्तों से दुआऐं माँग रहे हैं और उसके दोषियों के लिए सजा-ए-मौत की जोरदार आवाज उठा रहे हैं। यदि जानते भी हैं तो उसे गुप्त रख रहे हैं क्योंकि हम ये मानते हैं कि उसकी "इज्जत" लूट ली गई है। अब, जब वह इस दुनिया में नहीं है, तब भी उसकी, उसके परिवार की एवं उसके दोस्त की पहचान सार्वजनिक नहीं की जाएगी क्योंकि हमारे कानून में भी यही दस्तूर है। क्यूं हमेशा लड़की को ही यह जिल्लत झेलनी पड़ती है???...कैसी विडंबना है, कि एक आदमी नापाक इरादों के साथ किसी महिला की इज्जत लूटने की मंशा से उसके साथ कुछ नीच एवं गिरी हुई हरकतें करता है और हम भी मान लेते हैं कि उस महिला की इज्जत लुट गई है। यह मानकर हम उस अपराधी का साथ देते हैं तथा इस तरह से हम और हमारा समाज भी बलात्कारी बन जाता हैं। जिसने अपनी नामर्दगी का प्रदर्शन किया वह तो मर्द हो गया और एक बेगुनाह की पहचान छीन ली जाती है। आखिर क्यों???...अभी कुछ दिनों पहले सुनीता नाम की एक महिला ने एक न्यूज चैनल पर एक प्रोग्राम में बताया कि दश साल पहले, पंद्रह वर्ष की उम्र में उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसने अपनी आपबीती, पहचान के साथ पूरे देश के सामने रखी। मैं उसके इस जज्बे को सलाम करता हूँ। लेकिन सोचने वाली बात है कि आखिर उसे यह जरूरत क्यों पड़ी?...क्योंकि समाज ने उसे गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था जिस तरह से हम अभी तक ना जाने कितने ही अपनों को भुला चुके हैं....

Sep 14, 2012

सौ. गूगल छवियां

फिर से होगा युवराज काराज ”

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